यह भीड़ कैसी है लगता है यह कोई राशन की दुकान है. एक वक़्त था जब राशन की
दुकान पर लगे लोगो का पूरा दिन लग जाता था. लेकिन लाइन में लगे लोगो को
इस बात की ख़ुशी भी रहती थी की आखिर उन्हें सस्ता राशन तो मिल जाएगा.
जिससे घर के चार पैसे बचेंगे. लेकिन सरकार को उससे कोई फायदा नहीं हुआ.
इसलिए अब राशन की दुकान की जगह ठेका दिखता है. अपनी ही कालोनी के छोर पर
एकाएक बस से उतरने से पहले मेरी निगाह ऐसी ही लाईन पर गयी जैसी लाईन
मैंने अपने बचपन में राशन की भीड़ में देखी थी. लग रहा था सभी एक दुसरे से
पहले लेना चाहता है. हर कोई अपने को दबंग समझ रहा था. फिर अगले दिन भी
उसी तरह की भीड़ दिखी. घर आकर पापा से पूंछने पर पता चला वो तो वहा खुला
नया ठेका है. एक पल मैं सोच में पड़ गयी आखिर ये क्या हो रहा है. अकबारो
में भी पड़ती रहती हू की युवा शराब पीने में सबसे आगे है. कुछ समय पहले भी
लोग शराब जरुर पीते होंगे यहाँ के लोग. लेकिन ऐसे सार्वजानिक रूप से
खरीदते नहीं थे. वाकई आज जमाना बदल गया है. हर चौराहे पर आपको शराब में
धुत बेहोश लोगो का दिख जाना आम बात हो गयी है. पहले एक आदमी भी रोड पर
पड़े दिख जाता था तो लोग पूंछते-पूंछते उसे उसके घर छोड़ आते थे. लेकिन आज
तोह लोग कहते है, ''छोड़ये क्या करना है. रोज ही कोई न कोई यहाँ पड़ा ही
रहता है. कितनो को उनके घर तक छोड़ा जाये. होश में आएगा तो खुद चला
जायेगा.''
एक दिन देखा की बेहोश शराबी के पास एक चार साल का बच्चा रो रहा है. और
कह रहा है पापा उठो घर चलो. लेकिन उसके बाप को होश ही नहीं आ रहा था.
बच्चा आते जाते लोगो से कह रहा था मेरे पापा को घर ले चलो. न जाने आने
वाला समय कैसा होगा. बच्चे का भविष्य कैसा होगा. वो भी हो सकता है आने
वाले समय में किसी नाले में लेटा हो. जिस उम्र में पिता को बच्चे को
शिक्षा देनी चाहिए उसी उम्र में अपने बेटे के सहारे लेटा है. उस बच्चे के
आंसुओ को देख लोग शराबी को उसके घर छोड़ आये. लेकिन आने वाले समय में
राशन की दुकान की जगह सरकार ठेका खुलवा रही है तोह हो सकता है की उस
बच्चे जैसे ही हजारो लाखो या हो सकता है की पूरी जनता ऐसे ही नालो में,
कूड़े के ढेर पर पड़ी हो. बच्चे ऐसे ही बिलखते रहे.
रविवार, अक्टूबर 24, 2010
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sarkar ki neeti hi aisi hai hamko nale men dal kar khud maja le rahi hai
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